यस आई एम–5 [वॉरियर श्रेयाँशी]
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श्रेयाँशी बैठी हुई अपना काम कर रही थी। तभी उसकी नजर वहां पर रखी एक किताब पर पड़ी। जिसे देखकर वह अपनी पुरानी यादों में खो गई।
श्रेयाँशी की इक्कीस की उम्र में ही शादी हो गई थी। कई बार एबोसशन कराने की वजह से वह किसी जिंदा लाश की तरह दिखाई दे रही थी। उसकी उम्र हाल फिलहाल पच्चीस साल थी। वह अपने कमरे में बैठी हुई कुछ सोच रही थी। तभी वहां पर एक महिला पैर पटकते हुए आई। वह उसकी सास थी। "कर्मजली। तू हमारे घर को एक वारिश भी नही दे सकती। तू सुंदर सा बेटा दे सके इसलिए तो मैने अपने बेटे की शादी तुझ से कराई और तेरा इतना ख्याल रखा। पर तू एक वारिस भी नही दे पाई।“
इतना सुनते ही श्रेयाँशी फबक फबक़ कर रो पड़ी। तानों की वजह से नही बल्कि अपने गुस्से की वजह से। "पर इसमें मेरी क्या गलती है?“ उसने लगभग चिल्लाते हुए पूछा और फिर आगे बोली। डॉक्टर ने बताया तो है कि इसमें मेरी नही आपके बेटे की गलती है। उनकी वजह से बेटा नही हो सकता।"
"अपना मुंह बंद रख डायन। सारी गलती औरतों की होती है मर्दों की नही। औरतें मर्दों के पैरों की जुत्ती होती है।" श्रेयाँशी की सास ने बड़ी ही बेरुखी के साथ जवाब दिया और फिर दांत पीसते हुए बोली। “एक औरत का सिर्फ एक ही फर्ज होता है, वो है घर संभालना और बच्चे पैदा करना।”
"मै इंसान हूं, बच्चे पैदा करने की मशीन नही हूं।" श्रेयाँशी ने अपने अंदर की सारी हिम्मत समेटते हुए जवाब दिया और फिर आगे बोली। "आप चाहो तो अपने बेटे की दूसरी शादी करा सकते हो। मुझे कोई आपत्ति नहीं। फिर उसे अपने इशारों पर चलाना।" श्रेयाँशी गुस्से की वजह से कांप रही थी। जो उसने ना जाने कब से अपने अंदर समेटा हुआ था।
"बदजुबान! जुबान भी चलाती है। पहले मुंह भी नही खुलता था। पता नही कहां से सीख कर आई है। भगवान ही जाने कही मूंह काला करा कर आई है।" सास ने उसके चरित्र पर वार करते हुए कहा।
“दिन भर घर ही रहती हूं। आप भेजती है है क्या किसी को मेरे पास?” श्रेयाँशी ने खा जाने वाली निगाहों से अपनी सास को देखते हुए पूछा। सास का मुंह बंद हो गया।
कुछ ना सूझने पर सास लपकती हुई श्रेयाँशी की तरफ बढ़ गई। वह उसे मारने ही वाली थी कि श्रेयाँशी ने उसका हाथ हवा में ही पकड़ लिया। वह तिलमिला कर रह गई। उसने एक बार अपने हाथ को देखा और फिर दूसरा हाथ उठाने ही वाली थी कि श्रेयाँशी ने उसे नीचे ही पकड़ लिया।
आपने अंदर हिम्मत समेटते हुए उसने अपना सिर सास के सिर पर दे मारा। सास को दिन में ही तारे नजर आने लगे। एक बार को उसका दिमाग सुन्न हो गया।
“इसमें इतनी हिम्मत कहां से आई?” सास ने खुद से ही बड़बड़ाते हुए पूछा और फिर श्रेयाँशी को देखने लगी। आज वह साक्षात काली का अवतार लग रही थी।
वह सर्द आवाज में बोली। "बस बहुत हो गया। झेल लिया मैने जितना झेलना था। मै हमेशा से ही इतनी मजबूत ही थी। पर रिश्तों को बचाने के लिए मैने खुद को ही कही दफन कर दिया था। एक नारी ही नारी की शत्रु होती है।" वह कुछ देर रुकी और फिर अपनी सांसों को सामान्य बनाते हुए बोली। “ये बात आप लोगों के लिए ही बनी है। आपकी खुद की तो कोई सोच होती नही। बस तोते ही तरह जो रटवा दिया जाता है वही याद रहता है।”
सास कुछ कहने वाली थी कि श्रेयाँशी ने उसे हाथ का इशारा करके बीच में ही रोक लिया और फिर आग उगलते हुए बोली। “मुझे कुछ भी कहने की जरूरत नही है। किसी दिन फुर्सत से अपने बारे में सोचिएगा कि आप खुद की क्या पहचान है?”
बात पूरी करते ही वह सीधा अपने कमरें में चली गई। सामान समेट कर बाहर आ गई और आते ही बड़े खूंखार ढंग से बोली। “आज से मेरा और आपका कोई लेना देना नही है। हर बार आप मुझे धमकी देती थी कि घर से निकाल दूंगी तो सुनिए आज मै ही इस कैद को छोड़ कर जा रही हूं।”
श्रेयाँशी वहां से जाने ही वाली थी कि उसके सबसे कमजोर हिस्से पर वार करते हुए बोली। "हमारी नही तो कम से कम अपने मां बाप की इज्जत की तो परवाह कर लो। लोग उन्हें क्या कहेंगे कि उनकी लड़की घर छोड़ कर चली गई "
"किसकी इज्जत? कैसी इज्जत?" श्रेयाँशी ने घूरते हुए पूछा। मासूम और नाजुक सी लड़की आज बेहद खौफनाक दिख रही थी। वह अपने एक एक शब्द को चबाते हुए बोली। “जो बेटी को बोझ समझते हो और उन्हें सिर्फ इसलिए पढ़ाते हो ताकि उनकी शादी हो जाए। शादी के बाद ऐसे छोड़ देते है जैसे बैंक का लॉन उतारा हो।”
“यही धर्म है।” सास ने जवाब दिया।
“आग लगे ऐसे धर्म को। बेटा अगर मर्जी से भी मां बाप से दूर रहे तो बहू ने अलग किया होगा। वो अलग बात है कि मां बाप प्राइवेट लाइफ में दखल अंदाजी करते होंगे वो कोई नही देखता।” श्रेयाँशी ने अपने बात रखी और फिर आगे बोली। “जो मेरा दुःख और तकलीफ ना समझे वे कैसे मां बाप? किस्मत में यही लिखा था झेल ले कहकर उन्होंने पल्ला झाड़ लिया था तभी आप लोगों को इतनी छूट मिली।”
"एक लड़की होकर कहां जाओगी? घर छोड़ कर जाने वाली लड़की का कोई सहारा नहीं होता। जो भी देखता है बस गंदी नजरों से ही देखता है।" सास ने उस डराने की कोशिश करते हुए कहा।
“पढ़ी लिखी हूं कही भी काम कर लूंगी।” श्रेयाँशी ने तपाक से जवाब दिया और फिर आगे बोली। “इंसान वहां कमजोर पड़ता है जहां भावनात्मक रूप से जुड़ा हो। रही बात रहने की तो जितना इस घर में रहते हुए झेला है वैसे में कही भी रह लूंगी।”
“गुजारा कर लोगी?” सास ने पूछा।
वह उसकी हर कोशिश को नाकामयाब बनाते हुए बोली। “बचपन से यही गलत सीख दी जाती है। एक नारी में सृजन और विनाश दोनों की शक्ति होती है। वह अपना गुजारा नहीं कर सकती, क्या मजाक है?" कहते हुए वह पागलों की तरह हँसने लगी और फिर आगे बोली। "आप कुछ भी कह लीजिए। आज मैं नहीं रुकने वाली।" कहकर श्रेयाँशी जोर जोर से हंसने लगी। वह अपना सामान लेकर वहां से जाने ही वाली थी कि सामने से उसका पति आ गया।
“कहां जा रही हो तुम?” उसने बड़े बेकार तरीके से पूछा और फिर आगे बोला। “वो भी मुझ से बिना पूछे।”
“घर छोड़कर जा रही है।” सास ने आगे आते हुए जवाब दिया।
“दूर ही रहना।” उसने अपने पास आते हुए देख श्रेयाँशी ने चेतावनी दी। उसके हाथ में छुरी थी। वह रुकते हुए बोली। “मै तो भूल गई थी तुम्हारा मेल एगो हर्ट हो जाएगा। हर कोई मेल एगो के बारे में बात करता है पर कोई ये नही कहेगा कि पीरियड्स में बीवी के साथ प्यार से बात कर लो।”
“तुम मुझे छोड़कर नही जा सकती। मुझे पूरा यकीन है।” पति ने जवाब दिया। उसकी समझ में नही आ रहा था कि वह उसे कैसे रोक। रोकता भी कैसे उसमें सही और गलत की पहचान करने की अक्ल भी नही थी।
“पर मै तो जा रही हूं। रहना इसी गलतफहमी में।” श्रेयाँशी ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। “तलाक के पेपर भिजवा दूंगी सिग्नेचर कर देना।” कहते ही वह वहां से चल पड़ी।
वाह उसे रोकना चाहता था पर उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। “तेरी दूसरी शादी करवा दूंगी।” वह अपनी जगह पर ही रुक गया। श्रेयाँशी जब बाहर आई तो सड़क पर सन्नाटा था। वह वहां से सीधा बस स्टॉप पर चली गई और वहां पर खड़ी होकर किसी का इंतज़ार करने लगी।
बहुत देर तक वहां पर कोई भी नही आया।उसके दिमाग में तरह तरह के विचार आ रहे थे। चेहरे पर उम्मीद के भाव हताशा और परेशानी में बदलने लगे।
“मैने एक अजनबी की बात मान कर कोई गलती तो नही कर दी?” उसने खुद से सवाल किया और फिर पास में रखी हुई बैंच के ऊपर बैठ गई।
तभी उसकी नजर रोशनी में बनी हुई एक बड़ी सी परछाई पर रुक गई। धीरे धीरे वह बड़ी हो रही थी। उसे देखते ही उसकी हालत खराब हो गई और अगले ही पल वह एक परछाई कई परछाइयों में बदल गई। घबराहट की वजह से वह अपनी जगह पर खड़ी हो गई और जिस ओर परछाई बन रही थी उस तरफ देखने लगी और फिर दौड़ पड़ी और सीधा आते हुए शख्स के गले लग गई।
"कहां रह गई थी तुम?" उसने लगभग रोते हुए कहा और फिर आगे बोली। “मुझे लगा था कि तुम नही आओगी।”
"ऐसे कैसे नही आती? वादा किया था पूरा तो करना ही था।" कहते हुए सामने खड़ी हुई लड़की ने श्रेयाँशी को गले से लगा लिया। लड़की की उम्र तकरीबन तेरह साल थी। वह बेहद ही मासूम थी।
श्रेयाँशी को अब सही लग रहा था। उसने श्रेयाँशी को खुद से दूर किया और फिर पीछे की तरफ इशारा करते हुए बोली। “अपने दोस्तों को भी साथ में लाई हूं ताकि जरूरत पड़ने पर आपकी मदद कर सकूं।”
उसकी हिम्मत श्रेयाँशी को भी हिम्मत दे रही थी। “चले?” बच्ची ने श्रेयाँशी को देखते हुए पूछा। उसने हां में गर्दन हिला दी। सभी बच्चों ने बारी बारी से उसका सामान उठाया और फिर सभी उसे साथ में लेकर वहां से चले गए।
थोड़ी देर बाद सभी एक कालोनी के सामने जाकर रुक गए और फिर अंदर चले गए। वे एक घर के सामने जाकर रुक गए। वह उस बच्ची का घर था। सभी उसका सामान लेकर सीधा छत पर पहुंच गए। उन्होंने गलियारे में सामान रखा और फिर श्रेयाँशी को लेकर कमरें में चले गए।
“अब तुम सभी भी घर चले जाओ।” बच्ची ने कहा और फिर आगे बोली। “कल मिलते है।”
बच्ची की बात सुनकर सभी वहां से चले गए।
“तृष्णा।” श्रेयाँशी ने आवाज लगाते हुए कहा।
“बराबर वाला कमरा आपका है। ये मेरा है।” तृष्णा ने बड़े प्यार से अपनी बात कही।
“वॉश रूम कहां है?” श्रेयाँशी ने पूछा।
तृष्णा ने बता दिया। श्रेयाँशी वहां से चली गई। उसके जाते ही तृष्णा भी वहां से चली गई। जब श्रेयाँशी वापिस आई तो उसने देखा कि तृष्णा खाने के साथ बैठी हुई थी।
“आप तो नहा भी ली।” तृष्णा ने देखते हुए कहा।
"ये आप बना कर लाई?" श्रेयाँशी ने खाने को देखते हुए पूछा।
"हां! मुझे बनाना आता है।" तृष्णा ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। “दादी बोलती थी कि खाने से सारी परेशानी दूर हो जाती है।” श्रेयाँशी उसकी ठीक बराबर में बैठ गई। दोनों खाना खाने लगी।
“मै बर्तन साफ कर दूंगी।” श्रेयाँशी ने तृष्णा को देखते हुए कहा और फिर उसके हाथ से बर्तन लेते हुए बोली। “आप आराम करो। मुझे ना नही सुननी।”
“ठीक है।” तृष्णा ने बात मान ली।
श्रेयाँशी बर्तन लेकर वहां से चली गई। जब वह वापिस आई तो उसने देखा की तृष्णा सो चुकी थी। उसने कमरें की लाइट बंद की और अपने कमरे में चली गई। वह नही जानती थी कि उसके सामने लेटी हुई मासूम सी बच्ची ने अपनी जिंदगी में ना जाने क्या क्या देखा था।
“बिस्तर भी लगा दिया।” उसने कमरे को देखते हुए कहा और फिर जाकर लेट गई। सोचते सोचते उसे नींद आ गई।
श्रेयाँशी हॉस्पिटल में एक बैंच के ऊपर बैठी हुई थी। उसका पति दवाई लेने अंदर गया हुआ था। वह अपनी सोच में ही डूबी हुई थी। तभी उसे अपने कंधे किसी का प्यार भरा हाथ महसूस हुआ। "क्या हुआ आपको? आप इतनी उदास क्यों है?" श्रेयाँशी ने अपनी सोच में से बाहर आते ही इधर उधर देखना शुरू कर दिया। उसके सामने एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई थी जो बेहद मासूम थी।
"कुछ नही हुआ बच्चा। बस बीमार हूं।" श्रेयाँशी ने झूठी मुस्कान के साथ जवाब दिया।
"झूठ। आप बीमार नही हो बल्कि आप तो किसी बात से बहुत ही ज्यादा परेशान हो।" सामने खड़ी हुई लड़की ने श्रेयाँशी की आंखो को पढ़ते हुए कहा। जिसे देखकर वह हक्की बक्की रह गई। इतनी कम उम्र में वह बच्ची जरूरत से ज्यादा समझदार थी। “आपका नाम क्या है?”
"तृष्णा।" उसने अपनी प्यारी सी आवाज में जवाब दिया और फिर आगे बोली। “मैने नाम बता दिया है। अब आप अपना नाम बताइए।”
“श्रेयाँशी।” उसने जवाब दिया।
“आपके साथ क्या हुआ है?” तृष्णा ने उसके चेहरे को ध्यान से देखते हुए पूछा।
ना जाने उसकी बातों में कौन सा जादू था श्रेयाँशी खुद को रोक नहीं पाई। उसने उसे सब कुछ बता दिया।
"वे ऐसा कैसे कर सकते है?" तृष्णा ने तिलमिलाते हुए पूछा। उसके हाव भाव से वह डर गई। तृष्णा खुद पर काबू पाते हुए बोली। "आप ये सब कैसे सहन कर सकती है? आप इंसान है जानवर थोड़े ही।"
“मै ऐसा नही कर सकती।” श्रेयाँशी ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। “मै फिर कहां जाऊंगी? मेरे पास कोई जगह नहीं है।”
"मै भी तो अकेली ही रहती हूं और अकेले ही सारे काम करती हूं। आप क्यों नही कर सकती? खुद पर विश्वास कीजिए।" तृष्णा ने मुस्कुराते हुए बताया और फिर आगे बोली। “आप मेरे साथ रह लेना।”
“तुम मेरे लिए ये सब क्यों कर रही हो?” श्रेयाँशी ने पूछा।
“मुझे आप अच्छी लगी।” तृष्णा ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। “मुझे काम के लिए भी किसी की जरूरत थी। आप लाइब्रेरी संभाल लेगी?"
“हां संभाल लूंगी।” श्रेयाँशी ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। "क्या करना चाहिए मुझे?" श्रेयाँशी ने उम्मीद भरी निगाहों से तृष्णा की ओर देखने लगी। तृष्णा ने श्रेयाँशी को अपनी सारी योजना बताई और फिर वहां से चली गई। श्रेयाँशी जाती हुई तृष्णा को देखती रह गई।
★★★
जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️
hema mohril
25-Sep-2023 03:21 PM
Very nice
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Barsha🖤👑
01-Feb-2022 09:10 PM
Nice
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Shalu
07-Jan-2022 02:00 PM
Very good
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